प्रेम क्या हैं श्री कृष्ण | राधा कृष्ण प्रेम | श्री कृष्ण के प्रेम पर विचार।
कल युग में एक लड़का और लड़की के प्रेम को बहुत ही गंदी नज़र से देखा जाता हैं , कल युग की समाज के हिसाब से प्रेम केवल विवाह के बाद ही होना चाहिए ,शायद वो इसलिए क्यूकी उन लोगो ने श्री कृष्ण को भगवान तो माना और उनके सिद्धांतो को भी माना मगर सिर्फ दूसरों के लिए दूसरों की बहू और बेटियों के लिए , जब बात स्वयं या खुद के परिवार पर आती हैं तब उनका भगवान और सिद्धान्त दोनों बदल जाते हैं ।
परंतु उसके बाद भी भगवान श्री कृष्ण हमे प्रेम का सही अर्थ समझाने की कोशिश करते हैं , और यदि सही माईनो में देखा जाए तो सिर्फ राधा कृष्ण की जोड़ी ही हमे प्रेम का सही मतलब समझा सकती हैं ,
तो चलिये पड़ते हैं श्री कृष्ण के प्रेम पर विचार …
हर रोज सूर्य उगने के साथ ही जाग उठती हैं कुछ कहानियाँ , कुछ संघर्ष , कुछ इच्छाए तो कुछ यात्राएं परंतु सभी कहानियाँ सम्पन्न नहीं होती , सभी संघर्ष जीते नहीं जाते ,सभी इच्छाए पूरी नहीं होती,
और कुछ यात्राए भी अधूरी रेह जाती हैं क्यू ?
अब आप में से कुछ लोग कहेंगे प्रयास अधूरा रहा होगा तो कुछ लोगो को लगेगा कि निर्णय द्रड नहीं था ,कुछ क्रोध करेगे और
इस असफलता का बोझ अपने भाग्य के ऊपर डाल देंगे परंतु इन सब का कारण केवल एक ही होता हैं और वो हैं ढाई अक्षर का प्रेम ,
प्रेम जो न शास्त्रो की परिभाषा में मिलेगा , न शस्त्रों के बल में, न पाताल की गहराइयों में और न आकाश के तारों में, तो अब सवाल ये उठता हैं कि आखिर ये प्रेम हैं कहाँ , कैसे पाया जाता हैं इसे ,
क्या रास्ता हैं प्रेम को पाने का, तो अगर आपको जानना हैं कि प्रेम क्या हैं उसके लिए आपको भगवान श्री कृष्ण के विचारों को पड़ना होगा और
इसके लिए आपको कोई शुल्क देने की आवस्यकता नहीं हैं सिर्फ अपना मूल्यवान समय खर्च करना होगा, तो चलिये शुरू करते हैं भगवान श्री कृष्ण के प्रेम के विचारो की यात्रा को ।

प्रेम क्या हैं श्री कृष्ण
1-जिस प्रकार एक मटकी में जल रखा जाता हैं , जल जो शुद्ध होता हैं शीतल रहता हैं और जो हमारी प्यास भुजाता हैं तो जरा सोचिए ,
यदि उस मटकी की मिट्टी अच्छी न हो और उसे ठीक प्रकार से रोंदा न गया हो और आकार देकर उसे आग पर ठीक से पकाया भी न गया हो तो सोचिए क्या होगा वह मटकी टूट जाएगी, उसी प्रकार हमारे मन के साथ भी यही होता हैं,
क्यूकी यदि प्रेम ये जल हैं तो इसकी मटकी हैं आपका मन , मन रूपी पात्र में यदि विश्वास की मिट्टी न हो , यदि आसुओं से उसे बिघोया न गया हो ,
समय ने अगर उसे आकार न दिया हो और परीक्षा की अग्नि में उसे पकाया न गया हो तो प्रेम मन में नहीं रुक सकता तो यदि प्रेम को पाना हैं तो हृदय पर काम करना होगा | अन्यथा आपका प्रेम भी मटकी कि भांति कमजोर और हो जाएगा और मिट्टी कि तरह बिखर जाएगा ।
2-जब भी हम किसी सुंदर फूल या लाल गुलाब को देखते हैं तो हमे एक बार वो व्यक्ति जरूर याद आता हैं, जिससे हमे प्रेम होता हैं या वो जिससे हमने ज़िंदगी में कभी प्रेम किया होता हैं , और हम अपने प्रेम को उस फूल कि सुंदरता कि नज़र से देखने लगते हैं ।
उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं
जब भी हम किसी खूबसूरत चीज को देखते हैं जो प्यार का प्रतीक होती हैं उस वस्तु को देखकर हमे भी अपने प्यार की याद आने लगती हैं ,समझने के लिए एक फूल को प्यार से देखने की कोशिश करते हैं जैसे फूल की एक पत्ती की तरह उसकी आंखे, वैसी मुस्कान, खूबसूरत सा चेहरा पर वास्तव में क्या ये प्रेम का अस्तित्व होता हैं, तो इसका जवाब हैं नहीं ये तो उस शरीर का अस्तित्व होता हैं जिसे हमारी आंखो ने देखा और हमने स्वीकार कर लिया परंतु
प्रेम भिन्न हैं प्रेम तो उस हवा के झोंके की तरह होता हैं जो हमे दिखाई नहीं देता किन्तु वही हमे जीवन देता हैं ।
ये संसार किसी भी स्त्री को क्रूर कह सकता हैं क्यूकी वो उसे अपने तन की आंखो से देखता हैं परंतु जब वही स्त्री एक संतान को जन्म देती हैं ,
तो वही संतान अपनी माता को सबसे सुंदर समझती हैं क्यूकी वो भाव से जुड़ी होती हैं इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं की यदि प्रेम को तन की आंखो से देखने की कोशिश करोगे तो उसे पहचान नहीं पाओगे ,
तन की आंखो से तो देवी राधा भी अपने श्री कृष्ण को पहचान नहीं पायी थी इसलिए यदि प्रेम को समझना है तो मन की आंखो को खोलिए और अपने प्रेम पर भरोसा रखिए देर से ही सही आपका प्रेम आपको जरूर मिलेगा ।
3-किसी भी वस्तु को बांधने के लिए एक रस्सी की जरूरत पड़ती हैं और वह रस्सी धागो से जुड़कर बनती हैं परंतु श्री कृष्ण कहते हैं कि प्रेम को आप किसी रस्सी से नहीं बांध सकते क्यूकी प्रेम बनता हैं ,
विश्वास से और विश्वास की डोरी के धागे तो सत्य के धागो से बुने जाते हैं अब सवाल ये उठता हैं कि सत्य क्या हैं वो जो हमने देखा क्या वो सत्य हैं या जो हमने सुना वो सत्य हैं तो इसका जवाब हैं नहीं।
हमारा सत्य वो हैं जिस पर हमने विश्वास कर लिया और विश्वास वो जिसे हमने सत्य समझ लिया , वास्तविकता में अगर देखा जाए तो सत्य और विश्वास दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं
जहा सत्य नहीं वहाँ विश्वास की नीव नहीं और जहा विश्वास नहीं वहाँ सत्य अपना स्थान खो देता हैं इसलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अगर आपको किसी का सत्य जानना हैं तो विश्वास कीजिये ,
आपके विश्वास करते ही प्रेम अपनी जगह बना लेगा और फिर उसका मन आपसे सत्य ही कहेगा ।